Tuesday, 21 September 2021

Arsenic poisoning of water



आर्सेनिक 

ARSENIC :-

बिहार में त्वचा कैंसर का आंकड़ा इस वर्ष 21000 हो गया है। जो पूर्व वर्षों में होने वाले आंकड़े से 25% अधिक है ।आज हम त्वचा कैंसर से होने वाले रोगों में जिम्मेदार कारक जो पानी में घूल कर आने वाले खनिज संसाधनों में से एक जिम्मेदार उपधातु है हम इसके  प्रभाव पर प्रकाश डालेंगे।



Q:-- आर्सेनिक( AS ) आखिरकार क्या होता है?

यह सेमी मैटेलिक तत्व है। यह एक रंग हिन और स्वादहीन उप धातु है। जो जमीन के सत्ह मे  प्रचुर मात्रा में  खनिज संसाधन के रूप में पाई जाती है ।As का परमाणु क्रमांक एटॉमिक नंबर 33 परमाणु भार, एटॉमिक मास74•91 है यह अत्यंत विषैला हैAS-3 को आर्सेनिक सबसे जहरीला स्वरूप माना जाता है।


Q:-- आर्सोनिक   की पहचान कैसे हो सकती है?

आर्सेनिक एक रंगहिनऔर गंध हीन सेमी मैटेलिक बेहद जहरीला जिसमें कैंसर पैदा करने की क्षमता है इसे देखकर पहचान नहींकर  सकते इसे संभावित मानकर किसी लैव  में जांच करा सकते हैं। या जिस पानी में आर्सेनिक की मात्रा होती है ।वह मनुष के द्वारा ग्रहण करने पर उसके शरीर में प्रवेश कर जाता है ।और उसकी कुछ मात्रा पेशाब के रास्ते बाहर हो जाता है ।

पर AS  ज्यादा होने  उसके शरीर में रुक जाता है। जो सफेद या काले धब्बे के रूप में प्रकट होता है। जिससे कि उसकी त्वचा एवं तलवे  मोटा हो जाता है। जो जीता जागता कैंसर का रूप हो जाता है। जो एक प्रकार से लाई ईलाज बीमारी है।

Q पानी में आर्सेनिक की मात्रा बोतलबंद की आधारित नतीजे क्या प्रमाणिक माने जा सकते हैं ?

नहीं ,बोतलबंद पानी के आर्सेनिक  की मात्रा संभावित माने जा सकते है । इसकी पुष्टि किसी लैब में जांच के बाद ही तय कर सकते हैं ।की  किस में आर्सेनिक की मात्रा है या नहीं क्योंकि इसका ना कोई रंग है और नहीं कोई स्वाद है।

Q     क्या  आर्सेनिक  गर्व की  शिशु को प्रभावित कर सकता है?

हा , आर्सेनिक  गर्भ  के शिशु को भी प्रभावित करता है ।इससे नवजात बच्चों की वजन में कम हो जाना एवं बेहद कमजोर होना , मंदबुद्धि  होना ,अपाहिज जन्म लेना इससे बच्चों में मृत्यु दर की खतरा बढ़ जाता है


Q क्या फसलों के जरिए आर्सेनिक  खाद्य चक्र में शामिल हो जाता है?

हां आर्सेनिक  हिमालय से निकलने वाले गंगा नदी जिसमें अनेकों रासायनिक क्रिया होते हुए पत्थर के टूटने एवं मिट्टी में हुए परिवर्तन , गंगा -मेघना बेसिन क्षेत्र में हुए उत्पादन जैसे गेहूं, चावल इत्यादि में आर्सेनिक की मात्रा की पहचान की गई है जिसे खाने पर शरीर में और As  की मात्रा बढ़ जाती है। यहां तक पानी के माध्यम से मैं मछलियों ,फसलों  ,घासो, सभी में और आर्सेनिक  जैसा विषैला तत्व की मौजूदगी है।

Note :--As-3 को  सबसे जहरीला स्वरूप माना जाता है।

WHO  का मानना है10ppb ही पानी सुरक्षित होता है लेकिन समस्तीपुर सीतामढ़ी शिवहर वैशाली बलिया के आसपास के पानी में आर्सेनिक  की मात्रा1000-1200ppb तक पहुंच चुका है जो W .H O. मानक से कई गुना अधिक है जमीन के अंदर बहुत से तत्व का समागम है पर कभी-कभी पानी 80-100फ़िट   हो या कम कम में और As  की मात्रा मिल जाता है।

Q  यह देश के किन किन राज्यों में फैला है?

इस तरह के हालात ऐसे 12 राज्यों के 95 जिलों में पाए जाते हैं। बिहार ,अरुणाचल प्रदेश, कोलकाता, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश जैसे अनेक जिलों में विषैले पानी मिलते हैं। जिससे 7 करोड़ मनुष्य सीधे प्रभावित हो रहे हैं और लाखों से अधिक की संख्या में जो त्वचा कैंसर हुए हैं उसका सीधा प्रभाव As से है।

इस बीमारी से स्वास्थ्य केंद्र भी विवश नजर आते हैं इस प्रदूषित पानी के जरिए लिवर सिरोसिस, हृदय संबंधी रोग, न्यूरोलॉजिकल, पेट में गैस ,किडनी,त्वचा कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी को जन्म देता है। इस बीमारी में व्यक्ति वास्तविक उम्र से अधिक दिखाई पड़ता है इसका वजन कम हो जाता है। शरीर की त्वचा पर चकत्ते- चकत्ते छाले पड़ जाते हैं। गर्भ में पल रहे बच्चे भी अछूते नहीं रह जाते। यहां तक कि यह विषैले पानी फसल के खाद्य चक्र को भी नहीं छोड़ते है ।आजकल जिसे बोतल बंद पानी के रूप में उद्योग विकसित हुआ है । यह ₹20 का 20 लीटर पानी मिलता है ।

Q 'क्या इस भरोसे से पानी खरीद रहे हैं कि पैसे के बदले पानी में और आर्सेनिक  नहीं होगा क्या यह सच है?

नहीं यह संभावित हो सकता है। पर निश्चित नहीं इसे जांच कराने के लिए लैब ही पुष्टि कर सकता है। पर जितने भी बोतल बंद पानी है जो मानक पर खरे नहीं उतरते।

साधारण पानियों में आर्सेनिक 50-100ppb भी स्वास्थ्य के लिए उतना नुकसानदायक नहीं है पर जो ही इसकी मात्रा 250ppb बढ़ता जाता है ।स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर एवं त्वचा कैंसर के खतरे को और बढ़ाता चला जाता है।

स्वास्थ्य विभाग ,कृषि, पशुपालन ,राज्य सरकार ने भी कोई खास पहल नहीं की है हां इसके नाम पर सरकार से पैसे जो प्राप्त होते हैं उसमें ऑफिसर और ठेकेदारों की बंदरबांट अवश्य होती है। हेड पप की कितनी गहराई तक डाला गया है। इसकी जांच तो दूर हेडपंप लगने के बाद इसे देखने तक नहीं आते और एक कदम आगे बढ़कर ठेकेदार बोलते हैं। कि हेड पंप की जिम्मेदारी गांव वालों की है ना तो जल निगम की और नहीं ठेकेदार की।

निवारण:--

 इसे निवारण के उपाय भी हैं ।वह आम आदमी की  पहुंच से बाहर की बात है। क्योंकि यह खर्चीला है जो हम भारतवासियों जिनकी आमदनी बहुत कम है । हम पूरा नहीं कर पाएंगे पर निवारण के तौर पर यह परंपराओं पर लौटने का वक्त है। कूआ के पानी या बरसात के पानी जिस में ऑक्सीजन का प्रभाव अधिक होता है। और सूरज की रोशनी आर्सेनिक  को कही टिकने ही नहीं देता है।

भारतीय परंपरा में कुआं विरासत की धरोहर पूर्वक मिला था । पर  आए इस परंपरा पूरी तरह गायब हो गया है जरूरत है। कुआं की उपयोगिता की समझने की।

कुआं एवं बरसात का पानी जो  है। वह फसल चक्र एवं पीने के लीए योग्य होता है। यह  पानी  आर्सेनिक  मुक्त होता है। 

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