राज्य की कार्यपालिका
राज्य की कार्यपालिका में मुख्य चार अंग आपको देखने को मिलेंगे (1) राज्यपाल जो राज्य की कार्यपालिका का हेड होते हैं (2) मुख्यमंत्री (3) मंत्रीपरिषद (4) महाधिवक्ता
राज्यपाल- राज्य की कार्यपालिका का हेड होते हैं जिस तरह राष्ट्रपति पूर्ण कार्यपालिका का हेड होते हैं उन्हीं के तरह पूर्ण कार्यपालिका का हेड होते हैं उसी प्रकार से राज्य में एक पद बनाया गया है जिसका नाम है राज्यपाल यह राज्य की कार्यपालिका का हेड होते है
"याद होनी चाहिए कि राज्यपाल जो होते हैं वह राज्य के कार्यपालिका का हेड होते हैं लेकिन अगर बात वहीं आ जाती है कि वास्तविक हेड कौन होगा तो वह होंगे सीएम
"राज्य के मुख्यमंत्री होते हैं वह वास्तविक हेड होते हैं और जो राज्यपाल होते हैं वह संविधान हेड होते हैं।
"राज्यों के लिए एक राज्यपाल पद की व्यवस्था की गई है जो अनुच्छेद 152 के अंतर्गत आता है
अनुच्छेद 153- राज्यों के लिए राज्यपाल होंगे हालांकि एक से अधिक राज्यों के लिए भी एक राज्यपाल की नियुक्ति की जा सकती है।
अनुच्छेद 154 -में राज्यपाल की शक्तियां और कार्य क्या होंगे तो आप जानते होंगे कि राज्यपाल को भी कई शक्तियां दी गई है जिनका प्रयोग अपने अधीनस्थ यथार्थ मंत्री परिषद के माध्यम से करते हैं ।
अनुच्छेद 155 - राज्यपाल की नियुक्ति किसके द्वारा की जाती है- राष्ट्रपति के द्वारा राष्ट्रपति अपने मन से किसी को भी नियुक्त नहीं करते है और इस प्रकार से यह नियुक्ति किए गए राज्यपाल एक प्रकार से केंद्र के एजेंट के रूप में भी राज्य में काम करते हैं ऐसे में ही कई बार तनाव का विषय बन जाता है कि यदि राज्य सरकार विपक्षी पार्टी की हो और केंद्र सरकार से राज्यपाल की नियुक्ति विवाद का कारण बन जाता है।
"राज्यपाल की नियुक्ति कौन करता है- राष्ट्रपति
"राज्यपाल की नियुक्ति किस की सलाह पर होता है- मंत्री परिषद ( केंद्र सरकार)
अनुच्छेद 156- कार्यकाल ऐसे तो साधारण अगर देखा जाए तो राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्षों का दिखाई देता है लेकिन इसमें एक वर्ड इस्तेमाल किया गया है राज्यपाल राष्ट्रपति प्रसादपर्यंत पद धारण करेंगे राष्ट्रपति की इच्छा अनुसार ही अपने पद पर बने रहेंगे अर्थात जब तक राष्ट्रपति की इच्छा से प्राप्त है तब तक वे पद पर रहेंगे इन्हें हटाने की कोई विशेष प्रक्रिया नहीं है सीधे राष्ट्रपति के कहने पर ही त्यागपत्र देकर अपना पद खाली कर देते हैं तो ऐसे में साधारण तो 5 वर्ष होता है।
Note - राज्यपाल वास्तव में राष्ट्रपति का प्रसाद प्रणयहोता तो पहला उत्तर यही होगा। और समय में पूछा जाय तो पांच वर्ष होगा।
अनुच्छेद 157 -58 दोनों में ही योग्यता से जुड़े हुए वर्णन किए गए हैं तो योग्यता क्या होगी बिल्कुल
(1) भारत के नागरिक हो
(2) 35 वर्ष की आयु पूर्ण किया हो
(3) लाभ के पद पर ना हो
(4) लाभ के पद पर नाहो
साथ ही सांसद लोकसभा, राज्यसभा, एवं विधानसभा का सदस्य ना हो यदि वह सदस्य हैं तो जिस दिन से वो राज्यपाल बनेंगे उनकी सदस्यता उसी दिन से समाप्त हो जाएगा
अनुच्छेद 159 शपथ - वह राज्यपाल के रूप में राज्य में उन को शपथ दिलाने का काम करते हैं हाईकोर्ट के- मुख्य न्यायाधीश
"राज्यपाल को शपथ कौन दिलाता है उस राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा
तो आपने पढ़ा होगा कि अनुच्छेद 72 राष्ट्रपति मृत्युदंड को माफ कर सकते हैं
अनुच्छेद 161- तहत राज्यपाल को क्षमादान की शक्ति प्राप्त है जिसमें राज्य सूची के विषय पर शक्तियां प्राप्त हैं लेकिन यहां थोड़ा अलग होता है यह मृत्यु दंड माफ करने का अधिकार नहीं है
अनुच्छेद 213 अध्यादेश की शक्ति राज्यपाल को प्राप्त है जो विधानसभा सभा द्वारा पारित करने के पहले यह नियम के द्वारा विधि का रूप दे दिया जाता है लेकिन अगली बैठक शुरू होती हैतो विधानमंडल को उस बैठक के 6 सप्ताह के अंदर इसे पारित करना अनिवार्य होता है यदि इसे पारित नहीं करते हैं या अध्यादेश समाप्त मान लिया जाता है ।
अनुच्छेद 333- जो सभी राज्यों में विधान मंडल में विधानसभा होता है उस विधानसभा में एक एंग्लो इंडियन का चयन किया जा सकता है और इस एक ऐंगलो इंडियन का चयन राज्यपाल के द्वारा शक्ति प्राप्तहै
अनुच्छेद 154 राज्यपाल की शक्ति एवं कार्य
कार्यकारी शक्ति
उनके कार्यों से जुड़ा होता तो जैसे पहला नियुक्ति संबंधी इन्हें अधिकार प्राप्त है और यह बहुत सारे पोस्ट ऐसे हैं राज्य में जिनकी नियुक्ति करते हैं EX -
"मुख्यमंत्री की नियुक्ति ,किसके द्वारा की जाती है -राज्यपाल के द्वारा की जाती है ।
"मुख्यमंत्री के सलाहकार मंत्री परिषद की नियुक्ति
लोक सेवा आयोग के सदस्य की नियुक्ति
राज्य वित्त आयोग की नियुक्ति
राज्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति
जिला जज की नियुक्ति
राज्यपाल की सलाह के हाई कोर्ट के जज की नियुक्ति
" अनुच्छेद 356 - अनुच्छेद 356 राज्य में लागू हो जाता है तो वहीं राज्यपाल संवैधानिक हेड से हटकर वास्तविक हेड बन जाते हैं उस समय राज्य में विधानसभा निष्प्रभावी हो जाते हैं
विधायी शक्ति
राज्यपाल के कार्य के रूप में इसके अलावा कोई भी बिल तब तक पारित नहीं होगा जब तक राज्यपाल के हस्ताक्षर उस पर नहीं हो जाते हैं इस प्रकार से विधायी शक्ति में सबसे बड़ा एक पावर यही होता है कि राज्यपाल खुद ही राज्य की विधायिका का एक अभिन्न अंग होते हैं और उनके हस्ताक्षर के बाद ही कोई विधेयक पारित माना जाता है ।
" विधानसभा में1 एल्गो इंडियन की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं
वही विधान परिषद में 1 /6 सदस्यों क मनोयन राज्यपाल के द्वारा होता है।
वित्त संबंधी शक्तियां
इन शक्तियों के अंतर्गत कोई भी बिजली बिल जो विधानसभा में पारित किया जाना हो उस विधेयक संबंधी बिल राजपाल के हस्ताक्षर के बाद ही पारित किया जाता है।
Hi sir
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