भारत खुद को अलग क्यों रखा
आज भारत रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनामिक पार्टनरशिप से भ खुद को 2017 में अलग कर लिया था ।जबकि यह आसियान समेत कुल 15 देश दुनिया का सबसे बड़ा व्यापार समझौता किया है ।हालांकि भारत खुद इस डील से अलग है एशिया भर में कई देशों का उम्मीद है कि इस समझौता से उनकी अर्थव्यवस्था तेजी से पहले खुलेगी एक तिहाई आबादी $25 की अर्थव्यवस्था वाले एशिया की पेसिफिक देश जो 15 नवंबर का एक बहुत बड़ा समझौता किया है।( RCEP)
रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनामिक पार्टनरशिप इसकी मेजबानी वियतनाम ने की है। जिनके गुएन जुबान फूड वियतनाम के प्रधानमंत्री दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार समझौता की मेजबानी की है। इनमें 15 देशों में आसियान के 10 देश शामिल है ।थाईलैंड ,वियतनाम, सिंगापुर , फिलीपींस ,मलेशिया ,इंडोनेशिया, कंबोडिया, दारुस्सलाम इंडोनेशिया, म्यांमार हैं ।जिसमें चीन ,जापान, दक्षिण कोरिया ,ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल है। "अमेरिका इस समझौते से डोनाल्ड ट्रंप आने के तुरंत बाद ही निकल गया था। जबकि RCEP मे आने वाले 16 देश में भारत भी शामिल था। भारत अपने आपको अलग रखा क्योंकि व्यापार का एक ही नियम होगा ।जिससे सब को फायदा होगा इसके तहत सामान आवाजाही बिना रोक-टोक के एक देश से दूसरे देश में होगी बड़े-बड़े कंपनियां भी इस समझौते की हिस्सा होंगे ।एक देश दूसरे देश के जरूरतों के हिसाब से आर्थिक हिसाब से ध्यान में रखते हुए इन देशों के बीच अपना सामान बेचना आसान हो जाएगा ।इसमें जो कानूनी दांवपेच है समस्याएं आती थी बिल्कुल आसान हो जाएगा सीमा शुल्क नाम मात्र के बराबर रखा गया
इस व्यापार संगठन में जो देश सामानों का सबसे बड़ा उत्पादक होगा। उनके हित में बेहतर होगा उन्हें एक बेहतर बाजार मिलेगा और सीमा पार करने के दरमियान हर देश का अपना एक सीमा शुल्क होता है। उसमें भी उनको फायदा मिल जाएगा ।सस्ती दरों पर एक देश दूसरे देश में सामान को बेच सकेंगे।
जैसा कि मुक्त व्यापार समझौता नाम से ही पता चलता है
भारत खुद को क्यों बाहर रखा है RCEP समझौते से
2019 नवंबर में भारत खुद को इस समझौते से अलग कर लिया है। इसका सबसे बड़ा कारण है भारत में बढ़ते व्यापार घाटा ।भारत इस डील में शामिल होने का मतलब है कि भारत के बाजारों में चाइना की सस्ती वस्तुओं का बाढ़ आ जाना ।।जिससे भारत की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा । इसी को लेकर भारत में इस डील से खुद को अलग कर लिया ।लेकिन आज RCEP के सदस्य देश ने इसे खुला ऑफर भारत को दिया है कि भारत जब भी चाहे वह इस मुक्त व्यापार समझौता में शामिल हो सकता है। इस व्यापार में शामिल होने से यहां की डेयरी उद्योग को बहुत बुरा असर पड़ सकता है । ऑस्ट्रेलिया से आने वाला दूध पनीर यहां का डेरी उद्योग को खत्म कर देगा कहीं न कहीं डर तो सदमा की तरह है ।
छोटे छोटे कारोबारी हैं उनकी कमर टूट जाएगी ।एक तरफ व्यापार घाटा दूसरी तरफ से यहां की इंडस्ट्री खत्म हो जाएगी। इस डर से भारत खुद को बाहर कर लिया है । मुक्त व्यापार समझौता $25 बिलियन अमेरिकी डॉलर का होने वाला है ।जिसके लिए भारतीय बाजार को बड़े अवसर के रूप में देख रहा है अब भारत को बाजार करने के लिए अपने सामान बेचने के लिए , और बाजार की जरूरत पड़ेगी ।जिसकी तलाश भारत को नए सिरे से करना पड़ेगा। आर सी ई पी में भागीदार बनने पर भारत में आयात की जाने वाली ऐसी समान को इंपोर्ट ड्यूटी बहुत कम होगी । भारतीय औद्योगिक को भी डर है हमारी इंडस्ट्री पूरी तरह से खत्म ही ना हो जाए ऐसे में आत्मनिर्भर भारत का अभियान कमजोर पड़ सकता है ।
भारत आरसीपी समझौता में भागीदार होता है तो मुक्त व्यापार समझौता के देशों में ऑस्ट्रेलिया ,चीन के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा देश होगा ।भारत के विशेषज्ञ मानते हैं कि इस डील से भारत में आने वाले निवेश और सप्लाई चेन का भी असर पड़ेगा । भारत पहले ही करोना की महामारी का सामना कर रहा है ।
कई रास्ते पर चुनौतियों का सामना कर रहा है ।ऐसे में उनकी घरेलू बाजार की क्षमता बढ़ाने और इस्तेमाल के मौके को तो भारत की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी ।यानी सीधे-सीधे कहें तो RCEP का हिस्सा लेने से भारत का आत्मनिर्भर अभियान फीका पड़ जाएगा। एशिया के ऐसे कई सारे देश हैं जिन्हें उम्मीद है कि इस समझौता से कोरोना जैसे वायरस की महामारी से तेजी से उभरने को मदद मिलेगी ।यह समझौता 5 वर्ष 10 वर्ष 15 वर्ष 25 वर्ष के लिए भी हो सकता है ।उधर कांग्रेस की सरकार में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी आर सी ई पी को लेकर एक ट्वीट में कहा है कि यह दुनिया की सबसे बड़ी ट्रेडिंग बॉडी 15 देश के सदस्य हैं ।लेकिन इसमें भारत शामिल नहीं है इस डील के होने से फायदे भी हैं। और नुकसान भी हैं लेकिन कभी भी संसद में इसको लेकर के कोई भी बहस नहीं की गई मोदी सरकार एक तरफा इस फैसले को ली है जो लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है ।इससे जाहिर है की RCEP को लेकर राजनीतिक गलियारों की बहस तेज हो गई है । मोदी सरकार पर हिटलर की अटकलों को हवा तेज कर दी गई यह जाहिर सी बात है कि मुक्त व्यापार समझौता होता है । इनकी अपने फायदे और इनके अपने अवसर अलग होते हैं ।नुकसान पर ध्यान दे दो तो उनके शुल्क नाम मात्र के होंगे और भारत बहुत बड़ा बाजार है। बाहर से आए हुए सामान आएंगे तो छोटे छोटे व्यापारियों आत्महत्या के जैसा होगा । खेती-बाड़ी भी प्रभावित होगी यहां तक चाइना जैसे देश जिनकी सामान की क्वालिटी ना के बराबर होता है ।उन सामानों की भरमार इंडिया में बढ़ जाएगी ।हमारे छोटे छोटे औद्योगिक इंडस्ट्री विनाश के कगार पर होगे । पी चिदंबरम के बयान से ऐसा लगता है जैसे आर सी ई पी से भारत को बाहर होना चिदंबरम को कतई पसंद नहीं है ।भारत के लिए थोड़े नुकसान हैं तो लाभ भी हुई है इनके पैमाना चूज करना है कि लाभ किसको कमाना है और नुकसान कीसको झेलना ह। यह समझौता भारत के जनता के लिए कितना लाभदायक होगा कितना नुकसान देगा । इतने बड़े समझौते में एक बेहतर बाजार तो मिला है पर जोखिम भी बड़ी है ।जो आने वाले कई साल में देखने को मिलेंगे ।जिनका व्यापार घाटा ज्यादा है उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती ।देखना होगा इसका भविष्य है कितने देशों के साथ घड़ी आती है। मूल रूप से इसकी अगवानी चीन कर रहा है जाहिर सी बात है चीन अपना बाजार ढूंढ रहा है और उसके हित के लिए बहुत ही बेहतर मुक्त व्यापार समझौता होने वाला है । क्योंकि इसमें ज्यादा से ज्यादा चीन का सामान ही अलग-अलग देशों में बिक्री होगी ।यह समझौता हो चुका है बस कुछ ही समय में एक 15 देशों पर लागू भी हो जाएंगे। पूरी व्यापार का 30% व्यापार इन 15 देश आपस में ही कर पाएंगे।
आसियान पर एक नजर
ASEAN-Association of southeast asian Nations
आसियान के संस्थापक राष्ट्र -इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस ,सिंगापुर ,थाईलैंड।
स्थापना वर्ष - 8 अगस्त 1967 थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में हुई थी।
वर्तमान में मुख्यालय -इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता ।
आसियान का उद्देश्य-
देश आपस में आर्थिक विकास एवं समृद्धि को बढ़ावा देना और क्षेत्र में शांति और स्थिरता कायम करना
वर्तमान में आसियान सदस्य देश - ब्रूनेई, कंबोडिया ,इंडोनेशिया ,लाओस, मलेशिया, वर्मा ,फिलीपींस ,सिंगापुर ,थाईलैंड ,वियतनाम ,है ।एवं पर्यवेक्षक के तौर पर भी दो राष्ट्र सम्मिलित हैं।
अध्यक्ष -ली सीन लूंग
महासचिव -लीम जैक हुई( ब्रूनेई)
वर्तमान में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस संगठन खुद को अलग रखा है । उनके कई कारण जो टैक्स लगेगा उसका आधार वर्ष 2013 माना गया। जबकि मोदी जी चाहते थे कि इसका आधार वर्ष 2019 हो आने वाले 20 साल में ऐसे कई सामान होंगे जिन पर टैरिफ फ्री करना होगा। या बहुत कम करना होगा जिसमें 80 परसेंट तक कम करना होगा। इसमें टेलीकॉम कंपनियां की इक्विपमेंट्स एवं इलेक्ट्रॉनिक सामान शामिल है ।भारत में डेयरी उद्योग बहुत फला फूला नहीं है ।यहां टेक्नोजियों का अभाव है अप्रत्यक्ष रूप से उन पर चोट शुरू शुरू हो जाता ।इंडिया में 15 करोड़ आदमी का कारोबार है डेयरी उद्योग से जुड़ा है ।इस संगठन का हिस्सा बन जाने से न्यूजीलैंड ,ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से आए हुए डेयरी प्रोडक्ट्स इंडिया के डेयरी प्रोडक्ट को बिल्कुल बर्बाद कर देगा ।प्रधानमंत्री दिल की आवाज सुना और इस संगठन से बाहर हो गए ।ऐसा नहीं है कि सिर्फ नुकसान ही होता कुछ फायदा भी हो सकते थे ।इस संगठन के देशों में बर्मा शामिल है ।पूर्वोत्तर राज्य की सीमा मिलती-जुलती है वहां से बना हुआ सामान पूर्वोत्तर के रास्ते इंडिया में आते इस तरह से पूर्वोत्तर में विकास का नए द्वार खुलता।
सस्ते मजदूर मिलने के कारण इंडिया में भी निवेश होता । दक्षिण कोरिया ,ऑस्ट्रेलिया ,ताइवान के इन्वेस्टर आकर के के इंडियन मैन्युफैक्चरिंग हब हो सकता था । पर फ्री ट्रेड व्यापार होना घाटे का सौदा भी हो सकता है। क्योंकि डब्ल्यूटीओ व्यापार की जो शर्त हुई है उसमें इंडिया का उतना भला नहीं हो पाया । जो सस्ती दरें पर विदेश से आने वाले सामान इंडिया में आने से यहां की जो प्रोडक्ट्स वस्तु में हैं जिनकी हालत खराब हो जाते हैं ।ऐसे हालात में हम विदेश से आने वाले वस्तुओं पर अधिक शुल्क लगाते हैं ताकि उसे रोका जा सके ।घरेलू उद्योग धंधे को बढ़ावा मिले। RCEP संघटन वाले सामान 15 देशों के अंदर बिकता ।जाहिर सी बात है डेवलपमेंट का काम होता क्योंकि पूरे विश्व में होने वाले व्यापार का 30 परसेंटइन देशों में शामिल है। दूसरा कारण चाइना का कद बढ़ता चला जाएगा क्योंकि पूरे संगठन में व्यापार का सबसे बड़ा कारोबार चीन से होती है ।वह अपना माल आसानी से दूसरों में देशों में आएगा । चाइना दूसरों के देशों में आसानी से सामान भेज पाता है पर अपना देश में दूसरे देशों के लिए बाजार नहीं खोलता और भी कारण है चीन का जो सामान होता है उसमें क्वालिटी ना के बराबर ही होती है ।अच्छे गुणवत्ता नहीं होते सस्ता होने के कारण आसानी से बिक जाता है। दूसरे देशों में अब तो उसपर टैक्स भी नहीं लगा पाएंगे जाहिर सी बात है और सस्ते माल होंगे।
जिस देश में सामान बनेगा वहां यह नहीं लिखा जाएगा की किस देश का बना है। किसी भी देश में और कही जाकर बिकेगा यह पता नहीं चलेगा,इस संगठन से दूर होने का एक कारण, यह भी हुआ, क्वालिटी कितनी मात्रा है नहीं है कहां बनाए सारे चीज विवाद का जड़ था। आप उस पर कुछ नहीं कर सकते थे। सस्ते सामानों के लिए चाइना जाना जाता है। हमारे घरों में चाइना के सामान की बाढ़ लग जाएगी।यहां के छोटे व मध्यम व्यापारी सब का पतन हो जाता। हमें दूसरे बाजार की तलाश करनी होगी या दूसरा संगठन तैयार करना होगा देखते हैं आने वाले दिनों में हम कितने सफल होते हैं।
अगले अंक में इसकी और चर्चा करेंगे ।
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Aur kuchh behtr
ReplyDeleteNice sir
ReplyDeleteAchha hai
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